क्या आपने कभी सोचा है कि एक शिक्षण संस्थान, जो शिक्षा और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक होना चाहिए, खुद पर्यावरण को नुकसान पहुंचा रहा है? हाल ही में, राष्ट्रीय हरित अधिकरण (NGT) ने बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी (BHU) प्रशासन पर 26 पेड़ों की अवैध कटाई के लिए भारी जुर्माना लगाया है। यह फैसला पूरे देश में पर्यावरण प्रेमियों और छात्रों के बीच चर्चा का विषय बना हुआ है। आइए, इस पूरे मामले को विस्तार से समझते हैं।
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मामले की जड़: 26 पेड़ों की अवैध कटाई
मामला तब सामने आया जब NGT ने BHU प्रशासन को 26 पेड़ों की अवैध कटाई का दोषी पाया। यह कार्रवाई एक याचिका पर हुई, जिसमें BHU में पेड़ों की अवैध कटाई और लकड़ी की तस्करी की शिकायत की गई थी।
BHU प्रशासन ने दावा किया था कि काटे गए 12 पेड़ खतरनाक थे। हालांकि, NGT ने इस दलील को खारिज करते हुए कहा कि ये पेड़ चंदन के थे और उनकी चोरी का संदेह है। NGT ने इस मामले को "संदिग्ध" करार दिया है।
NGT का सख्त रुख और जुर्माना
NGT ने न केवल BHU को दोषी ठहराया, बल्कि उन पर भारी जुर्माना भी लगाया है। NGT के आदेश के अनुसार, BHU को प्रत्येक काटे गए पेड़ के लिए 20 पौधे लगाने का आदेश दिया गया है। इसके अलावा, राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (SPCB) ने भी BHU पर जुर्माना लगाया है।
NGT के अध्यक्ष न्यायमूर्ति प्रकाश श्रीवास्तव और विशेषज्ञ सदस्य डॉ. ए. सेंथिल वेल की पीठ ने यह आदेश सुनाया। पीठ ने SPCB को एक महीने के भीतर क्षतिपूर्ति राशि निर्धारित करने और वसूलने का निर्देश भी दिया।
चंदन के पेड़ों की चोरी का संदेह
यह मामला इसलिए और भी गंभीर हो जाता है क्योंकि काटे गए पेड़ चंदन के थे। NGT ने यह भी कहा कि जब यूनिवर्सिटी की चारदीवारी और मेन गेट पर सुरक्षा गार्ड और CCTV कैमरे लगे हैं, तब भी चंदन के पेड़ कैसे कट गए? यह एक गंभीर सुरक्षा चूक और मिलीभगत का संकेत देता है।
BHU प्रशासन की लापरवाही
NGT के आदेश के अनुसार, BHU प्रशासन ने पेड़ों को काटने के लिए न तो अनुमति मांगी थी और न ही कोई आधिकारिक प्रक्रिया का पालन किया था। इसके अलावा, NGT ने कहा कि BHU प्रशासन ने वृक्षारोपण अभियान के तहत पौधे लगाए, लेकिन विकसित पेड़ों को अवैध रूप से उखाड़ने या काटने से रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठाया।
आगे क्या होगा?
NGT ने इस मामले को गंभीरता से लिया है और उम्मीद है कि यह फैसला भविष्य में अन्य संस्थानों के लिए एक सबक बनेगा। पर्यावरण संरक्षण सिर्फ कागजों पर नहीं, बल्कि हमारी रोजमर्रा की जिंदगी का हिस्सा होना चाहिए।
आपकी राय
इस मामले पर आपकी क्या राय है? क्या आपको लगता है कि इस तरह के सख्त फैसले पर्यावरण संरक्षण के लिए जरूरी हैं? अपने विचार कमेंट्स में जरूर साझा करें।
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